Share Delisting क्या होता है ?

जब भी किसी कंपनी के Share Delisting  का मतलब होता है के अब वह कंपनी शेयर बाज़ार से निकलने वाली है ! शेयर बाजार Delisting के बाद उसे कंपनी के शेयर, शेयर बाजार में ट्रेड नहीं होता और साथ ही  साथ ना तो आप उसे कंपनी के शेयर खरीद या बेच  नहीं सकते !

कंपनी शेयर बाजार से Delist क्यों होती है

कंपनी शेयर से डिलिस्टिंग क्यों होती है यही जानने से पहले  यह  जान लेते  है के डिलिस्टिंग  कितने प्रकार के होती है !

शेयर डिलिस्टिंग के प्रकार :-

1.  INVOLUNTARY DELISTING

2.  VOLUNTARY DELISTING

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INVOLUNTARY DELISTING :- जब कोई भी कंपनी को SEBI जो है वह अगर Delisting करती है, जिससे कि जिसने कंपनी में निवेश किया है उसे नुकसान न हो तो उसे  INVOLUNTARY DELISTING  कहते है , इसके कई कारण  होता है
    अगर कंपनी अपने क़र्ज़ को repayment नहीं कर पा रही है और कंपनी Bankruptcy प्रोसेस में हो तब  SEBI कंपनी को delisting  कर सकता है ! साथ हे साथ अगर कंपनी सेबी के और शेयर बाजार के नियम का पालन नहीं करती तू भी कंपनी delisting के जा सकता है !
 VOLUNTARY DELISTING : – जब कंपनी के प्रमोटर अपनी मर्ज़ी से कंपनी को शेयर बाजार से Delist   करती है तब  वह  INVOLUNTARY DELISTING  में आता  है !
 VOLUNTARY DELISTING  के कारण :-
  • COMPANY   के प्रमोटर अगर कंपनी के बारे कुछ बड़े  फैसला लेना चाहते  है तब  उसे सेबी और शेयरहोल्डर से अनुमति लेनी होती है , अगर कंपनी के प्रमोटर यह अधिकार अपने पास रखना कहते है तो कंपनी  के प्रमोटर शेयर के डीलिस्टिंग करते है!
  •  कंपनी अगर शेयर बाजार में लिस्ट है तो उसे Annual  Result , बोर्ड मिटिंग , कंपनी के लॉन्ग टर्म Vision  यही सब shareholder के साथ शेयर करने होता है, कई बार कंपनी के प्रमोटर इससे बचने के लिए Share Delisting  करते है !
  • कम्पनी के Market Capitalization का बहुत लंबे समय तक कम होने के कारण!
  • शेयर मार्केट में शेयर की वैल्यू जितना होना चाहिए उससे कम होने के कारण!
  • कम्पनी किसी और कम्पनी के साथ अगर Merge होने वाली हो तब या कंपनी का उसके पैरेंट कंपनी के साथ Merge  होने वाली हो तब !

Voluntary Delisting कैसे होता है

जब कम्पनी Voluntary Delisting करती है, तो उससे सबसे पहले कम्पनी के बोर्ड से और SEBI से अनुमति लेना होता है!  उसके बाद जो उसके शेयर होल्डर है, उनसे वोटिंग के जरिए अप्रूवल लेना  रहता है, कंपनी इसके लिए बाय बैक लाती है! जिसमें से एक निश्चित वैल्यू पर शेयर को वापस खरीदती है! Buy Back किस किमत पर होगा यह कम्पनी शेयरहोल्डर के साथ Briding के द्वारा तय कि जाती है! जिस कीमत पर सबसे ज्यादा बोली लगाई जाती है उसी कीमत पर बाय बैक BUY BACK  किया जाता है !
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Involuntary Delisting कैसे होता है

    यह भी दो तरीके से होता है एक तो कर्ज न चुकाने के कारण इसमें शेयर के डीलिस्टिंग होने के बाद कंपनी किसी और कम्पनी को बोली लगाकर जो सबसे ज्यादा पैसे देता है ऊसे बेच दिया जाता है और जो रकम मिलता है उसे सबसे पहले कंपनी ने जिन जिन बैंकों से कर्ज लिया है उसे मिलता है उसके बाद जिन्होंने कम्पनी के Bond में निवेश किया है ऊसे मिलता है और फिर शेयर होल्डर को, Bankruptcy में Retail Investor को मुश्किल के हि कुछ मिल पाता है अधिकत्तर समय जो बैंक है उसे ही अपने पूरे पैसे नहीं मिल पाते !
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दूसरा अगर SEBI  किसी कम्पनी को Delist करती है अगर कंपनी SEBI के  नियमों का अनुपालन नहीं करते और अपनी Financial रिपोर्ट जमा नहीं करती तो SEBI Delisting करती है इसके लिए वह किसी  Security कंपनी को कंपनी के वैल्यू निकालने के लिए देती है ईसके बाद जो Face वैल्यू आती है! ऊस वैल्यू पर कम्पनी को शेयर होल्डर के सारे शेयर खरीदने होते हैं!
 कंपनी के DELISTING के लिए  कंपनी के प्रमोटर के पास 90 % हो जाने पर SEBI  कंपनी को DEELIST करती है अगर कोई SHAREHOLDER कंपनी के SHARE BUY BACK  वैल्यू पर  अपने शेयर नहीं बेचना चाहता  तो वह शेयर को अपने पास भी रख सकता है !
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